अनजानी भूल

रिश्तों की गर्माहट को न खो, अनजानी भूल पर
न तुम कहीं पहूंचोगो, खो देंगे हम भी मुकाम को

माना रोज होती होगी मेरी खताओं से मुलाकात 
बे-ख़ता हो जाना तो इल्जाम है खुद इल्जाम को

याद करना-इल्जाम मेरा, चाहने की खता कबूल
पर कुछ कसूर तो रख दो, इस बहकती शाम को

रख तूं पर्दा भले, बद्दुआओं में तो न रख हमनवां
यूँ सरे राह रुसवा ना कर, मेरी चाहत के नाम को

आप जैसे नशेमन को नशा न दे पायेगा म़यकदा
नजरें फेर लेने की तौहीन, नहीं बख़श्ते जाम को

और देर तलक न रह पायेगा चिरागे़-सहरी रोशन
लौट भी आ कि शमा अब पहुंचती है अंजाम को
 


तारीख: 04.07.2017                                    उत्तम दिनोदिया









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है