अकेलेपन की ठंडी वादी में यादों की गर्म ऊन
कितने ही साथ गुजरे पल अतीता ही रह जाते हैं
भीगी पलकों के साथ खुद के अशेष से परिचय
उधङ जाये कढाई तो कहां कसीदा ही रह पाते हैं
मोहब्बत के खेल में दुनिया को नापसंद है सच
कि तब बोले गये झूठ, अपतिता ही रह जाते हैं
पुष्य नक्षत्र हर जलकण के नसीब में नहीं होता
कुछ काल गर्भ में अछूते अघटिता ही रह जाते हैं
सभी प्रेम गाथाएं नहीं होती हैं परिवर्तित गीतों में
अधिकतर "अनकहे शब्द" कविता ही रह जाते हैं