आशिक़ी मेरी दोस्तों अधूरी रही

आशिक़ी मेरी दोस्तों अधूरी रही
ख्वाबों में भी उनसे मेरी दूरी रही ।


बेवफा क्यों उसे कहें हम भला
कुछ तो अपनी ही मज़बूरी रही ।


न इज़हार,न करार, न कोई तकरार
जुदाई में हमारी खुदा की मंजूरी रही ।


न सजदे में गए और न शिकवे किए
मुहब्बत में खामोशी जो ज़रुरी रही ।


कामयाबियों ने चूमे कदम उनके हैं
आदतों में जिनकी जी हुजूरी रही ।


तारीख: 16.09.2019                                    अजय प्रसाद









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