दीवारों के भी कान होते तो हैं
नफ़रत के मकान होते तो हैं
तुम चाहो तो खरीदो वफ़ा को
मुहब्बत के दुकान होते तो हैं
दिखते न होंगे तुझे ऐ ग़ज़ल
हर गम के निशान होते तो हैं
हम तो हर वक्त उन्हें सोचते है
वो भी परेशान होते तो हैं
उनकी गहराईयों में जाना मुमकिन नहीं
वो नज़्म कुछ आसान होते तो हैं