दिल की आवारगी का कोई ठिकाना कर दो

दिल की आवारगी का कोई ठिकाना कर दो,.
तुम जिंदगी को मेरी इश्क का मयखाना कर दो...
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मुद्दतों बाद मुसाफ़िर मिला है मुसाफ़िर से,.
लंबे इन रास्तों में सफर सुहाना कर दो...
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एक शाम जब आती है आफताब ले जाती है,.
तुम रातों में लौ जलाने का कोई बहाना कर दो...
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लाखों दुआएं मांगी है मैनें इन कुछ दिनों में,.
तुम आओ घर में मेरे खुद को खुदा कर दो...
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लफ्ज़ कम पडे़ तो तुम झिझकना मत,.
गज़लो में ही सही तुम फक्त एक इशारा कर दो...
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मैं चेहरे में नही दिल में रहता हूँ,.
कभी वक्त मिले तो आयतों में मेरी जुंबा पढ़ दो ...
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यहाँ कागज़ों पर लिखने से मिलता नही इश्क,.
हाथों में हाथ लेके मेरी हाँ में हाँ कर दो...
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मुझे इजहार_ए_इश्क थोडा़ कम आता है,.
पीलो मुझे घुंट घुंट चलो मुझे दरिया का पानी कर दो ..


तारीख: 22.08.2019                                    देव रावत देव









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