दिल नही मेरा संभल रहा है

कतरा कतरा पिघल रहा है  
दिल नही मेरा संभल रहा है  || 

हवा भी ऐसे सुलग रही है 
और ये सावन भी जल रहा है ||

कि एक तेरे जाने से देखो, 
कैसे सबकुछ बदल रहा है || 

फूल लग रहा शूल सरीखा 
नमक जले पर मल रहा है ||

अब चाँद अखरता है मुझको 
क्यों आसमान में निकल रहा है ||

जाने वाला तो जायेगा ही,  
नियति का नीयत अटल रहा है || 

पर दिल नही मेरा संभल रहा है, 
ये कतरा कतरा पिघल रहा है || 


तारीख: 18.06.2017                                    साधना सिंह









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