इक पत्र मिला था रस्ते में जिसमें प्रेम छलकता दिखता था

इक पत्र मिला था रस्ते में जिसमें प्रेम छलकता दिखता था
कुचला था पैरों से उसको जिसमें प्रेम छलकता दिखता था

दीदा-ओ-दिल की बातें थीं औ यादें थी बीतीं रातों की
आंखों से जलाया था उसको जिसमें प्रेम छलकता दिखता था

इक ग़ज़ल भी उसमें गूंज रही था गूंज रहा दीवानापन
सुनने को तैयार नहीं उसको जिसमें प्रेम छलकता दिखता था

अफ़साने भी लिख रक्खे थे औ लिख रखा था अरमानों को
वादें भी तोड़ दिए उसके जिसमें प्रेम छलकता दिखता था

इश्क़ लिखा था दर्द लिखा था और लिखा था तन्हाई
उसमें लिख दीं वो सारी बातें जिसमें प्रेम छलकता दिखता था

मिलन की उस बेला का औ अहद-ए-वफ़ा१ का जिक्र भी था
देखा भी किसी ने नहीं उसको जिसमें प्रेम छलकता दिखता था


तारीख: 19.06.2017                                    आयुष राय









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