जन्नत थी पास अपने ऐसा नशा था उनका

जन्नत थी पास अपने ऐसा नशा उनका था 
शौक-ए-वफ़ा था जाहिर इश्क़ अपने दरम्यां था

तारीकियां शबों की कटती थी पानी जैसी
वो हुस्नगर था मेरा मुझे इश्क़ भी जवां था

कासिद से उसने मेरे बात मुख़्तसर वो कह दी
टूटे थे ख़्वाब उस शब मेरा हाथ कांपता था

सिलवटें चादरों की लगने लगी नुकीली
डगमगाता था प्यार मेरा सीधा ना रास्ता था

अश्कों से भींगता था लिबास मेरा उस दिन
गिरता था आसमां भी क़यामत से वास्ता था

मुझे यकीं ही नहीं था ऐसा करेगा मुझसे
दिल डूबता था मेरा मैं पनाह मांगता था

मुझे ठंड लग रही थी छह कम्बलों के नीचे
वो हंस रही थी ज़ाहिद मैं अवाक ताकता था


तारीख: 19.06.2017                                    आयुष राय









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