जीवन को हरा बनाने दो

जीवन को हरा बनाने दो |
रिश्तों की पौध उगाने दो ||

अमरबेल से शहर हो गए,
मरने से  गाँव  बचाने दो ||

जात–पात, वर्ण–व्यवस्था,
है खरपतवार हटाने दो ||

मरुस्थल सी हुई हर छाती,
भावों की नहर बहाने दो ||

दुख की झाड़ हटाकर ‘माही’,
अब सुख के बाग लगाने दो ||


तारीख: 19.06.2017                                    महेश कुमार कुलदीप









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