कब मैं अपने जख्मों का सबसे गिला करता हूँ

कब मैं अपने जख्मों का सबसे गिला करता हूँ 
है खंजरो का डर लोगों के गले मिला करता हूँ,,, 

इंसानी बगीचों की रवायते निभाना नहीं आया 
बरगदों की तरह दूर जंगलों में खिला करता हूँ,,, 

झूमरों की बेलौस रोशनी में दिये पूछता कौन 
अँधेरे रस्तो में चिरागो की तरह जला करता हूँ,,, 

खूब हँसती है दुनिया जख्मों को देखकर मेरे 
अपनी हँसी में दबाकर इनको सिला करता हूँ,,, 

कुछ नहीं, मायूसो को मुस्कान देने कोशिश है 
दिल से इंसानियत का मजबूत किला करता हूँ,,, 


तारीख: 16.06.2017                                    मोहन









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है