महकने लगते हैं सब इस ख़बर से

महकने लगते हैं सब इस ख़बर से
वो गुज़रेगा अभी इस रहग़ुज़र से


मुहब्बत नाम है ऐसी बला का
नहीं बचता कोई जिसके असर से


महज़ आँखों से सुनता बोलता है
खुदा ने भी नवाज़ा किस हुनर से


बड़े छोटे का कोई भेद मत कर
सभी को देख तू इक ही नज़र से


उठाते हो मुझी पर उँगलियाँ क्यों
नहीं होती ख़ताएँ किस बशर से


दुआएँ गर न होतीं साथ माँ की
बचाता कौन मुझको हर कहर से


पवन मैं चाहता हूँ जिस किसी को
उसे फिर चाहता हूँ दिल, जिगर से
 


तारीख: 17.03.2018                                    डॉ. लवलेश दत्त









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