जख्म-ए-दिल को मरहम की जरूरत है।
मौला मुझे तेरे थोड़े करम की जरुरत है।
ख़त्म क्यों नही कर देता मुझे कातिल मेरा,
कब तक तड़पायेगा मुझे, रहम की जरुरत है।
तोड़ दे ख्वाब सारे, खोल दे अब तो आँखें मेरी,
अब न खुशफहमी, न कोई बहम की जरुरत है।
किसी की सुनता नहीं, भरने से भरता नहीं,
किसी को ऐसे किसी जख्म की जरुरत है ?
हँस कर चल देता है हर बार मुझे छोड़ कर,
उसको भी तो थोड़ी शर्म की जरुरत है।