न जाने कितना वो मुझे तड़पाएगी

न जाने कितना वो मुझे तड़पाएगी
खामोशी उसकी जान मेरी ले जायेगी ।

अभी जो हूँ तो अपनाते नही मुझको
सांस जो टूटी फिर आँख आंसू लाएगी ।

हैं वो ही एक आरजू मेरी ज़िन्दगी की
देखता हूँ कब तक यूँही ठुकराएगी ।

ये सोचकर ही साँसों से अपनी लड़ रहा
मौत का मेरी बोझ ले कैसे जी पायेगी ।

है यकीं प्यार पे औ इरादे भी मजबूत है
एक न एक दिन वो घर मेरा महकाएगी ।

हक़ नही तुझपे लेकिन एहसास मुझको है
याद रिशु की तुझको भी रातो में जगाएगी ।


तारीख: 15.06.2017                                    ऋषभ शर्मा रिशु









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है