नामंज़ूर है मुझे तेरी आँखों से छिप कर उतरना,
मैं आंसू ही सही मगर, सरेआम निकलना चाहता हूँ...
जो राहें हमें तेरी दिल की गहराई तक ले जाएँ,
सारी दुनिया से जुदा हो, उसी राह गुज़रना चाहता हूँ...
तेरे हाथों में मेहँदी की तरहा रचना चाहता हूँ,
तेरे बालों की तरह, मैं भी तेरे हाथों से संवरना चाहता हूँ...
"सहर" हूँ सहर की ख़ुशबू में ही जीना चाहता हूँ,
मगर अपनी ग़ज़ल के हाथों, किसी रोज़ मरना चाहता हूँ...