फूल हूँ अंगार नही हूँ

फूल हूँ अंगार नही हूँ
कलम हूँ तलवार नही हूँ ।

अपनो ने गले लगाया दिल से
गैरो का मैं तलबगार नही हूँ ।

रंग पाऊँ तुझको अपने रंग में
राधे का मधुर प्यार नही हूँ ।

लोगों के मन से जुड़ा हुआ मैं
मिट जाऊं वो बिचार नही हूँ ।

शक भर निगाहों से न देखो
आशिको का सरदार नही हूँ ।

बड़े शहर में घर है तेरा
मैं भी कोई गवाँर नही हूँ ।

जो चाहूँ वो मिल जाए 
इतना भी खुशगंवार नही हूँ ।


तारीख: 16.06.2017                                    ऋषभ शर्मा रिशु









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