राजे दिल सब बताना चाहता हूँ
एक ग़ज़ल तुझ पर सुनाना चाहता हूँ ।
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ताव देकर मूछ पर मैं अपनी यारों
धाक दुश्मन पर जमाना चाहता हूँ ।
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ताख से ये घर नही जमते है हमको
फिर वही घर हो पुराना चाहता हूँ ।
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रात देखे ख्वाब जो तुम संग मैंने
ख्वाब वो सब मैं भुनाना चाहता हूँ ।
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दाँव पर मैं जो लगा हूँ उसके इश्क़ में
हार खुद उसको जिताना चाहता हूँ ।
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चाँद कब तक दूर होगा चांदनी से
दूरियां अब ये घटाना चाहता हूँ ।
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वो डराते हमको क्या तलवार से है
जोर लेखन का दिखाना चाहता हूँ ।
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चल पड़ा जो चाह में तेरी तरफ मैं
राह के कांटे भुलाना चाहता हूँ ।