रुख़ से पर्दा जो हटा सा देखा

रुख़ से पर्दा जो हटा सा देखा
चाँद बदली में छुपा सा देखा

झूठ के वार बड़े तीखे थे
मैंने सच यार मरा सा देखा

हूँ लगा खोलने मैं मुँह जबसे
मैंने हर शख़्स खफ़ा सा देखा

देर तक माँ रही मेरे संग में,
माँ के चेहरे को खिला सा देखा

शह्र में लेके आइना जो गया
रंग चहरों का उड़ा सा देखा
 


तारीख: 17.03.2018                                    डॉ. लवलेश दत्त









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