तेरी यादों की महक, तेज धूप में भी, जब गुजरे करीब से
दूर कंही दूर क्षितिज पर, हौले से, शर्मा सी जाती है शाम
कभी उजङा, कभी खिला, दिन रैन ताकता हूँ आजकल
खामोशियां, तेरी तस्वीर, पानी में कंकर और लहरें तमाम
आगोश में समेट लेने को मुझे, की लाख साजिशें रात ने
हम भी गिनते रहे करवटें, लिख हथेली पर आपका नाम
सुना, सोते नहीं हैं आप भी, मेरी हिचकी ही पढ लिजिये
मैंने रोशनी के धागों से लिखा है, आपके चांद को पयाम
बङा चुभते रहे, बङा जलते रहे, दिन रात सफर के छाले
हर मरहम को नकारा, कैसे छूने देता मैं मोहब्बते मुकाम
अजी सुनिए, प्यास बख्श दीजिए "कतरा-ऐ-ख्वाब" की