मैंने सब बातें कह दी, बस एक बात रह गई 

मैंने सब बातें कह दी, बस एक बात रह गई 
तुम्हारे बगैर काटी हुई वो खाली रात रह गई

आँखों-आँखों में हमें मापनी थी आसमाँ की सरहदें
इसी जुस्तजू में वो चाँद -तारों की बारात रह गई

दो ख्वाब धुल के हो सकते थे कोई संगमरमरी कायनात
मगर किसी पेशोपेश में बाट जोहती बरसात रह गई

क्षितिज का कोई कोना लाके टाँक देता तुम्हारे दुशाले में
रूठने और मनने की रवायत में वो मुलाक़ात रह गई

बन तो सकती ही थी अपनी भी कोई प्रेम कहानी
रस्मों- रिवाज़ में बची सिर्फ हमारी जात रह गई

जिसने भी इसे खेला और जिस तरह भी खेला
उसके हिस्से के शतरंज में बस शह और मात रह गई


तारीख: 26.01.2020                                    सलिल सरोज









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