तू ही है सब कुछ

ज़िन्दगी क्या है, क्या तुझे समझाऊँ
मैं तो सच्चा हूँ, झूठ तुझे क्या बतलाऊँ

वैसे टूटे प्याले तो है मेरे महकदे में
तू कहे तो उनसे ही अपनी महफ़िल सजाऊँ

ये शब तेरी आँख को आँसू कैसे दे गई
तू कहे तो खंजर इसके सीने पर दे आऊँ

मुझे हँसना सीखा दे तेरे लौट जाने पर भी
मैं चाहता हूँ कि खुद से जफ़ा कर जाऊँ

मुझे तैरना नहीं आता, कसम मुझे तेरी
तू कहे तो फिर भी सागर में कूद जाऊँ


तारीख: 05.08.2017                                    अंकित अग्रवाल









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है