छेड़छाड़ हमारा राष्ट्रीय स्वभाव

छेड़छाड़ करना हमारा राष्ट्रीय स्वभाव है। राष्ट्र और राष्ट्रीयता से जुडी चीज़ों से हमें भावनात्मक लगाव होता है और उन चीज़ों को हम तार-तार नहीं होने दे सकते है बल्कि उनके विस्तार हेतु प्रयत्नरत रहते है। छेड़छाड़ की बढ़ती घटनाए इस बात की गवाही देती है कि छेड़छाड़ करना एक आदत मात्र नहीं रही है बल्कि ये एक ध्येय बन चुकी है। सड़क किनारे जा रही लड़की से लेकर ठप्पा खाकर ऑफ स्टंप से बाहर जा रहीं स्विंग बॉल से छेड़छाड़ करने में हमें महारथ हासिल है। कड़े कानून और पुलिस की सख्ती भी छेडछाड़ पर रोक लगाने में असहाय साबित हो रही है और यही छेड़छाड़ के प्रति हमारे कमिटमेंट और निष्ठा को दर्शाता है।

राह चलते छेड़छाड़ करना अब पिछड़ेपन की श्रेणी में आता है इसलिए अब छेड़छाड़ ने फेसबुक पर "पोक" और इनबॉक्स में हाय-हैलो का सोफिस्टिकेटेड़ रूप भी धारण कर लिया है क्योंकि अब फेसबुक पर ये काम लोगो की  नजरो से बचकर भी किया जा सकता है। छेड़छाड़ का स्वभाव  केवल आमजनता तक सीमित नहीं  रहा है, हाल ही में सरकार ने नोटबंदी के दौरान पुराने और नए नोटों के साथ-साथ जनता के धैर्य के साथ भी छेड़छाड़ की। सरकार द्वारा छेड़छाड़ को प्रमोट करने से इसका भविष्य उज्ज्वल लगता है। 

नोटबंदी से पहले ही त्रस्त विपक्ष अब 5 राज्यो में चुनावी हार की ज़िम्मेदारी भी सरकार द्वारा ईवीएम मशीनों में की गई छेड़छाड़ पर डाल रहा है। विपक्ष का कहना है की अगर हराना ही था तो बूथ कैप्चरिंग करके हराते, उसमे कम से कम पारदर्शिता तो रहती, ईवीएम में छेड़छाड़ होने से तो पता ही नहीं चल पा रहा की जो सीटे हमने हारी थी केवल उन्ही पर ईवीएम में गड़बड़ी हुई है या फिर जो जीती थी उन पर भी हुई है। सरकार की तरफ से चुनाव आयोग ने ईवीएम में किसी भी तरह की गड़बड़ी या छेड़छाड़ का खंडन किया है लेकिन सरकार के अंदरुनी सूत्रो के मुताबिक ईवीएम में छेड़छाड़ डिजिटल इंडिया की चुनाव-सुधारो पर टेस्टिंग करने के उद्देश्य से की गई थी।

हम छेड़छाड़ के परंपरागत  तरीको से आगे बढ़ चुके है, साइबर फ्रॉड, क्रेडिट कार्ड क्लोनिंग, हैकिंग जैसे नए "हथियारो" ने छेड़छाड़ का "मेकओवर" कर दिया है। छेड़छाड़ के लिए हाई-टेक और डिजिटल साधनो का प्रयोग हो रहा है जिससे कम समय में अधिक परिणाम आ रहे है और हमने प्रति घंटा छेड़छाड़ करने के अपने पिछले औसत को काफी पीछे छोड़ दिया। तकनीक ने हर चीज़ को बदल कर रख दिया लेकिन तकनीक हर जगह अंगुली करने की हमारी आदत को नहीं बदल पाई,  अंतर केवल इतना आया है कि अब हम हर जगह अंगुली, टच-स्क्रीन के माध्यम से करते है। 

पुराने अनुभवी लोगो का मानना है की टेक्नोलॉजी चाहे कितनी भी तरक्की कर ले लेकिन अगर मानव हस्तक्षेप ख़त्म हो गया तो फिर छेड़छाड़ में भावनात्मक पुट का अभाव हो जाएगा जिससे देर-सबेर एक बड़ा तबका छेड़छाड़ रूपी राष्ट्रीय धर्म से दूर हो जाएगा, जैसे मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद जन-सामान्य कांग्रेस से दूर हो गया था। 
 
हम छेडछाड़ के क्षेत्र को ग्लोबल बनाने में पूरा बल लगा रहे है और इस विषय में निरंतर चिंतनशील और प्रगतिशील रहते है। मेरा मानना है की  छेड़छाड़ करने के नए-नए तरीके खोजने और छेड़छाड़ करने वालो की प्रतिभा को सवांरने और उन्हें बहुमुखी आयाम प्रदान करने के लिए हमारे पास पर्याप्त "मैन-पॉवर" मौजूद है और इस क्षेत्र में हम दक्षिण-एशिया का नेतृत्व कर सकते है। 

भारत सरकार चाहे तो अगले सार्क-सम्मलेन में इस विषय को चर्चा के एजेंडे में शामिल कर बाकि देशो को भी भरोसे में लेकर आने वाले वित्तीय वर्षो में छेड़छाड़ के निर्यात और उससे जीडीपी में होने वाली वृद्धि के लक्ष्य को बजट में  प्रस्तावित कर सकती है।


तारीख: 18.06.2017                                    अमित शर्मा 









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