जन  का  धन : राष्ट्र के नाम संबोधन

बीते स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने हर बार की तरह इस बार भी लाल किले से देश को संबोधित किया। संबोधन में मन की बात को जन की बात की तरह प्रस्तुत किया गया। यही "जन-मन-गण....." का सही क्रियान्वयन है। अलबत्ता देखकर ख़ुशी हुई कि प्रधानमंत्री ने लालकिले से राष्ट्र को संबोधित किया और बाकि लोगो ने अपने स्तर पर अथक और दुरूह प्रयास करते हुए अपनी फेसबुक टाइमलाइन से ही सही पर राष्ट्र को संबोधित किया।

देश बदल रहा है और टेक्नोलॉजी भी, इसीलिए लोकतंत्र में संबोधन का एकाधिकार केवल प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के पास नहीं हो सकता है। देश सबका है इसीलिए राष्ट्रपति हो या अपनी पत्नी का पत्नी , सबको समान रूप से राष्ट्र संबोधने का अधिकार होना चाहिए तभी लोकतंत्र सच्चे मायनो में सफल हो सकता है। अभिव्यक्ति का अधिकार तो सविंधान के ज़रिये पहले से हथियाया हुआ था और अब सूचना का अधिकार देकर सरकार ने आमजन को और सशक्त बनाया है। सूचना का अधिकार और गैज़ेट पाकर आमजन न केवल सूचित हुआ बल्कि किसी भी बाहुबली को कट्टप्पा की तरह चित करने में सक्षम भी हुआ। 

सुबह से लेकर शाम तक आम आदमी एक ज़िम्मेदार RTI एक्टिविस्ट की तरह फेसबुक से लेकर ट्वीटर तक, वाट्सएप से लेकर इंस्टाग्राम तक सूचना का आदान-प्रदान करता रहता है। रात होते होते इंसान इतना भर जाता की सोने से पहले हर ज्वलंत मुद्दे पर देश को सुनाना चाहता है, मतलब राष्ट्र के नाम संबोधन प्रसारित करना चाहता है। राष्ट्रपति केवल स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर ही राष्ट्र के नाम संबोधन जारी करता  है लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का नागरिक इतना "सूचना समृद्ध" और "भाषा-प्रवीण" हो चुका है की वो हर दिन की पूर्व संध्या को राष्ट्र के नाम संबोधन जारी कर सकता है। उदबोधन हो या संबोधन आजकल दोनों में बोध का अभाव पाया जाता है।

हमारे देश में प्रतिभा तो बहुत है लेकिन सब अलग अलग सरनेम वाली इसीलिए राष्ट्र के नाम के संबोधन की अभिव्यक्ति भी अलग अलग रंग-रूप और अवशेषो में सामने आती है। कुछ दिनों पूर्व "ढिंचैक पूजा" नाम की प्रचंड प्रतिभावान गायिका /कलाकार ने अपने यू ट्यूब चैनल से अपनी अभिव्यक्ति का तांडव मचाया था। कई सविंधान विशेषज्ञ इसे राष्ट्र के नाम काफी प्रभावशाली संबोधन बता रहे है क्योंकि इस वीडियो ने पूरे  राष्ट्र की चेतना को अपनी गिरफ्त में ले लिया था। ज़्यादातर न्यूज़ एंकर्स भी आजकल "व्यूज" को "न्यूज़" की तरह "यूज़"कर रोज़ राष्ट्र को संबोधित कर उसे फ्री टू एयर उपकृत करते है।

राष्ट्र को कभी भी, कोई भी संबोधित करे वो शिकायत नहीं करता, वो सुन लेता है, प्रतिकार नहीं करता, क्योंकि वो जानता है कि सुनना और सहना उसकी नियति बन चुका है। यह बात हम भी अच्छी तरह से समझ चुके है इसीलिए अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए राष्ट्र को कभी  ज़्यादा देर के लिए अकेला नहीं छोड़ते, समय समय पर उसे संबोधित करके उसे उसकी नियति याद दिलाते रहते है।


तारीख: 18.08.2017                                    अमित शर्मा 









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