पूंजी-राजनीति एकता जिंदाबाद

पूरी दुनिया के बड़े व्यापारी, पूंजीपति और वित्तीय संस्थान जी -5, जी 8, जी-20 और शक्तिशाली देशों की मीटिंग चल रही थी. विकासशील देश बाहर धरना दे रहे थे. हमें भी इन संस्थाओं में शामिल किया जाये. इन संस्थाओं ने मिलजुलकर यह तय किया कि जब तक बाहर खड़े देशों को यह गुमान रहेगा कि वे विकासशील देश है. तब तक वे अपनी दावेदारी करते रहेंगे. अतः इन सबको निम्न आय श्रेणी वाले देशों में कर दिया जाये.


जी-1 सहमत है .हम प्रस्ताव पारित करते है.


जी-1 ! पहले सच्चे लोग राजनीति करते थे. उनकी वजह से पूंजी का विस्तार नहीं हो रहा था. इसीलिए गुंडे मवालियों को अपने प्रतिनिधि के रूप में सरकार के पक्ष में काम करने के लिए कहा और उन्होंने किया भी.


जी-2 ! आपने ठीक कहा है. लेकिन उन्होंने अब पूंजी की सत्ता को अस्वीकार कर लिया है. वे कहते है कि जब वोट हम दिलाए, बूथ हम लूटे तो राज कोई और क्यों करे? ये सब हम अपने लिए भी तो कर सकते है.अब उन्होंने खुद चुनाव लड़ना शुरू कर दिया है.


जी -3! तो क्या हुआ, हमने विभिन्न देशों की सरकारों में कठपुतली लोगों को सरकार में रखा ताकि हमारी आर्थिक नीतियों को लागू कर सके. इस योजना से हमने अपनी पूंजी का काफी विस्तार भी तो किया है.


जी-4! उसका अनुभव हमें हो चूका है. जनता ने कठपुतली सरकार का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष नियन्त्रण अस्वीकार कर लिया है . चिंता की बात ये है कि कठपुतली सरकार अपना समय पूरा नहीं कर पाती और हमारी पूंजी बहुत से देशों में फंस जाती है.


जी-5! हमें ऐसा लगता है कि किसी को अपना प्रतिनिधि बनाने से अच्छा है, हम स्वयं ही अपना प्रतिनिधित्व करे फिर तो पूंजी के बढ़ने में कोई दिक्कत नहीं आएगी.


जी -1 ! बात एकदम सही है. यह प्रयोग अमेरिका से ही होना चाहिए , हमारी जीत में भी जीत होगी और हार में भी जीत होगी. ट्रम्प चूँकि आप एक अरबपति कारोबारी है. अब आपको अमेरिकी राष्ट्रपति पद के दावेदार के रूप में स्वीकार भी कर लिया गया है. आपने दुनिया भर में रियल एस्टेट परियोजनाओं में निवेश भी कर रखा है. भारत में तो आपने गुड़गांव, मुंबई और पुणे में इस तरह की परियोजनाओं में बहुत ज्यादा निवेश किया है। भला फिर भारत सहित कोई भी देश प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से आपका विरोध भी नहीं कर सकता है.यहाँ से पूरी दुनिया में एक नई परम्परा शुरू होगी.


जी-2! ये बात ठीक है. चुनाव लड़ने के लिए पक्ष विपक्ष दोनों पार्टियों को चंदा हम दे. गुंडों मवालियों को हम पाले और फिर वे हमीं पर मुकदमा चलाये. ये पूंजी के लिए, बाजार के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं था. जब हम सब कुछ करते है तो राजनीति को भी चला सकते है. आखिर सभी देशों की नीतियाँ तो हमारे कहने पर ही बनती है.


जी-3 ! किसी देश के प्रतिनिधि के साथ प्रतिनिधि बनकर हम ही तो उनके साथ जाते है. या हमारे जैसे प्रतिनिधि समूह दौरा करते है. देशों के प्रतिनिधि तो बस सेल्फी से खुश होते है. लेकिन हम जैसे लोग व्यापारिक समझौता करते है.


जी-4! और भोली-भाली जनता को क्या पता? विदेशी दौरा क्यों करते है? किसे साथ जाते है? क्या समझौता हुआ? किते का हुआ? किसको लाभ हुआ?कितना खर्च हुआ? आखिर इसका लेखा झोका लेने देने की कोई जरूरत भी नहीं. वर्ना जो राजनीतिक- व्यापारिक खिचड़ी पक रही है. वह जल्द ही ख़त्म हो जाएगी.तो बोलो पूंजी-राजनीति एकता जिंदाबाद.


तारीख: 18.06.2017                                    एम.एम.चन्द्रा









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