आंचल


                 मैं जयपुर बस अड्डे पर नैनीताल को जानी वाली बस की अर्धनिद्रा अवस्था में पलकें बंदकर लेटा हुआ काफी देर से बस की प्रतीक्षा कर रहा था । तभी भाई भूख लगी है । कुछ खाने को दो न ईश्वर के नाम पर सहायता करो मेरी । ईश्वर तुम्हारा भला करेगा । बेबसी,लाचारी से भरे शब्दों ने मुझे अर्धनिद्रा से जाग्रत होने के लिए विवश कर दिया और उन शब्दों को सुनकर झट से मेरी आंखे खुल गई । आंखे खुलते ही मैंने देखा एक छोटी सी बच्ची आंखों में आंसू लिए,उम्मीद का दामन थामे,अपने कोमल दोनों हाथ फैलाते हुए, ( उम्र लगभग चार पांच साल रही होगी ) मेरे सामने खड़ी थी ।


इससे पहले कि मैं उस मासूम बच्ची से कुछ पूछ पाता वो बच्ची उससे पहले ही अपने पहले वाले शब्दों को बड़ी ही करूणा भरी आवाज़ में दोहरा कर मेरे सामने बेहोश होकर गिर पड़ी । मैंने शीघ्र ही उस बच्ची को अपनी गोद में उठा लिया और उसके चेहरे पर पानी के छींटे मारकर उसके गालों को थपथपाते हुए उसे होश में लाने का प्रयास करने लगा । मेरे ऐसा करने से उस मासूम बच्ची को थोड़ी देर में होश आ गया । पूरी तरह से होश में आनें पर वो बच्ची घबरा कर मेरी गोद से उतरकर डरी सहमी मेरे सामने खड़ी होकर बहुत ही करूणा से रोने लगी । मैंने उस बच्ची को रूपये देने के बजाय उसके शीश पर स्नेह से भरा अपना हाथ फेरते हुए प्रेम भरे स्वर में अपने समीप बैठने के लिए कहा । और पास में ही एक होटल था उस होटल वाले को आवाज़ लगा कर एक थाली भोजन लाने के लिए कहा ।

वो बच्ची डरी सहमी सी आंखों में आंसू लिए मेरे समीप बैठ गई । मैंने उस बच्ची की दयनीय दशा का निरीक्षण किया । उस बच्ची का दायाँ हाथ जला हुआ था । उस बच्ची के वस्त्र जगह -जगह से फटे हुए वक्त की बेरहम कलम के द्वारा लिखें उस बच्ची के बेरंग नसीब की दास्ताँ बयां कर रहे थे । उस बच्ची का मासूम चेहरा फूलों सा कोमल, प्यारा-सा लेकिन साथ में भूख की तड़प को भी बयां कर रहा था और मेरे देश की तरक्की कहूं या मेरे देश का दुर्भाग्य ये सवाल उस बच्ची का बचपन मुझसे पूछ रहा था । मैंने प्रेम पूर्वक स्वर में उस बच्ची की दयनीय दशा का निरीक्षण करने के बाद उस बच्ची का नाम पूछा ? सहमते हुए जैसे ही उस बच्ची ने अपना नाम बताया 'नाम जानकर एक पल के तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि उस बच्ची का इतना प्यारा नाम हो सकता है । आंचल !


आंचल नाम था उस बच्ची का । परंतु दुर्भाग्य आंचल से आंचल के दोनों ही रूप कोसों दूर थे उसके वर्तमान जीवन से । सर्व प्रथम ममतामयी स्नेह प्रेम का आंचल और दुसरा स्त्री के मान - सम्मान को दर्शाता आंचल । बड़ी ही मुश्किल से मैं उस पल अपने जज्बातों को अपनी आंखों में आने से रोक पाया था ।  इतने में ही आंचल ने मेरी सोच को बीच में ही यह कहते हुए और उलझा दिया कि मेरी मां नहीं है । मां का देहांत पिछले साल हो गया था । और पिताजी मैंने आंचल से पूछा ? पिताजी का नाम सुनते ही आंचल की कोमल आंखों से आंसू बरसने लगे वह पिताजी का नाम सुनते ही सिसक - सिसक कर ऐसे रोने लगी जैसे उसके सिसकने में कोई दर्द भरी कहानी छिपी हो । 


               सर ! यह लीजिए खाना होटल वाले ने खाना देते हुए मुझसे कहा । मैंने खाना लेते हुए होटल वाले को धन्यवाद कहा और प्रेम भरे स्वर में आंचल के शीश पर अपना स्नेह भरा हाथ फेर कर उससे खाना खाने के लिए बोला । आंचल ने एक पल के लिए भोजन की थाली को निहारा और विनती स्वरूप अपने आंसुओं को थामते हुए मुझसे कहा भाई ! क्या आप मुझे अपने हाथों से खाना खिलाएंगे ? भाई मां के देहांत के बाद से किसी ने भी मुझे प्रेम से अपने हाथों से खाना नहीं खिलाया है तथा दूसरा मेरा हाथ जलने के कारण मैं खाना खाने में असमर्थ तो नहीं कह सकती परंतु विवश जरूर हूं अपने जले हुए हाथों से खाना खाने के लिए । मैंने आंचल के दर्द भरे आंसुओं को अपने हाथों से पोंछते हुए कहा हां बच्चे जी क्यों नहीं भाई आपको अपने हाथों से खाना अवश्य  खिलाएगा ।

 

मुझे उस पर आंचल के मासूम चेहरे में अपनी प्यारी छोटी बहन पिंकी का चेहरा दिखाई देने लगा था । मेरी छोटी बहन पिंकी भी घर पर आंचल की तरह से ही खाना खाने के लिए मेरे हाथों से कहा करती है और मेरे हाथों से ही खाना खाती है । सच तो ये है कि मुझे आंचल को खाना खिलाते समय अपने हाथों से ऐसा महसूस हो रहा था मानों जैसे मैं आंचल को नहीं अपनी छोटी बहन पिंकी को खाना खिला रहा हूँ । मैंने एहसास किया मेरे हाथों से प्रत्येक निवाला रोटी का खाने के बाद आंचल के चेहरे से भूख की तड़प शांत होती जा रही थी । भूख की व्याकुलता कमजोर पड़ती जा रही थी । परंतु फिर भी न जाने कौन से दर्द और तड़प के आंसू आंचल की आंखों से बहते जा रहे थे । आंचल ने भरपूर मेरे हाथों से भोजन करने के बाद एक निवाला रोटी का बड़ी ही श्रद्धा पूर्वक अपने हाथों से मुझे खिलाया । मैं बयां नहीं कर सकता उस एक निवाले का स्वाद । उस एक निवाले को खाकर मुझे ऐसे लगा जैसे मेरे जीवन भर की भूख उस एक निवाले ने शांत कर दी हो । शायद वो इसलिए क्योंकि उसे एक निवाले में सच्चे प्रेम की खुशबू,आंचल की आंखों से गिरा आंसू जो मिला हुआ था । खाना खाने के बाद आंचल ने मुझसे पूछा ! भाई आपका नाम देव है ना ? हां ! बच्चे जी मेरा नाम देव है । परंतु बच्चे तुम्हें कैसे पता चला मेरा नाम देव है ? मैंने आश्चर्यचकित होकर आंचल से पूछा ? हंसते हुए आंचल ने कहा भाई आपकी कलाई पर लिखा हुआ है । तो आप पढ़ना भी जानते हो बच्चे जी , मैंने आंचल से पूछा ? हां भाई जब मां जिंदा थी तो मुझे पढ़ने के लिए स्कूल भेजा करती थी ।

 

मां के देहांत होने के बाद आंचल ने मायूस होकर बताया पिताजी ने मेरा स्कूल जाना छुड़वा दिया । पर क्यों बच्चे जी पिताजी ने आपका स्कूल जाना क्यों छुड़वा दिया ? पिता जी का नाम आते ही मेरी जुबां पर आंचल के होंठ कंपकंपाने लगे । आंचल का कोमल मासूम चेहरा गंभीर एवं शरीर भय के मारे थरथर आने लगा और आंखों से दर्द के आंसू फिर से छलकने लगे । मैंने यह देख आंचल का हाथ अपने हाथों में लेकर उसके शीश पर प्यार से अपना स्नेह का हाथ फेरते हुए प्रेम से पूछा बच्चे जी क्या बात है पिताजी का नाम आते ही तुम डर कर रोने क्यों लग जाती हो ? क्या बात है भाई को बताओ । देखो बच्चे जी तुमने मुझे भाई बोला है । बच्चे जी अगर आपने  भाई को अपने डरने का कारण नहीं बताया तो तुम्हारा भाई तुमसे नाराज हो जाएगा , कट्टी हो जाएगा । मैं आंचल से ऐसा कह नाराजगी स्वरूप दिखाने के लिए उससे मुंह फेर कर बैठ गया । ऐसा करना मुझे अच्छा तो नहीं लगा उस पल परंतु उस पल ऐसा करके ही मुझे आंचल के दर्द भरे आंसुओं के अतीत के बारे में पता चल सकता था ।आखिर में आंचल ने कुछ देर के बाद स्वयं को संभालते हुए मुझे अपने जीवन के छोटे से अतीत के बारे में बताया और मुझसे कहा भाई मां के देहांत के बाद पिताजी ने मेरा स्कूल जाना छुड़वा दिया और मुझे भीख मांगने के लिए विवश करने लगे ।

 

प्रत्येक दिन हर समय मुझे भीख मांगने के लिए प्रताड़ित करने लगे । मैंने भीख मांगने के लिए मना किया तो मुझे मारा - पीटा । मेरा हाथ भी पिताजी ने इसी कारण से जलाया है । मैं दो दिन पहले खाली हाथ बिना भीख मांगे घर चली गई थी तो गुस्से में आकर पिताजी ने मेरा हाथ जला दिया था । मुझे कई दिनों तक भूखा भी रखा । लेकिन तुम्हारे पिताजी तुमसे भीख क्यों मंगवाते हैं , मैंने आंचल को बीच में रोककर सवाल किया ? आंचल ने मुझसे कहा भाई पिताजी शराब का सेवन करते हैं और मेरे द्वारा मांगे गए भीख के रुपयों  से जुआ भी खेलते हैं ।  मां की मृत्यु का कारण भी पिता जी ही हैं । क्योंकि शराब और जुए की वजह से पिताजी मां के साथ प्रतिदिन लड़ाई - झगड़ा करते और मां को पीटते । पिताजी के ऐसा करने की वजह से ही मां मुझे एक दिन लंबी बीमारी से लड़ते हुए इस संसार में असहाय, अकेला छोड़ कर चली गई । मां की मृत्यु के बाद पिताजी अपनी जुए शराब की लत को पूरा करने के लिए मुझसे भीख मंगवाने का प्रयास करने लगे और वह अपने प्रयास में एक दिन सफल भी हो गए । भाई मैंने बहुत हिम्मत करी थी भीख न मांगने की । परंतु मैं अबोध बच्ची क्या करती । भूख की तड़प ने मुझे एक दिन भीख मांगने के लिए विवश कर ही दिया । भाई मैं शौक के लिए नहीं ओर भिखारियों की तरह, बल्कि अपनी विवशता के कारण दिन भर भीख मांगती हूं । भीख मांग अपने पेट की भूख शांत कर भीख से मांगे हुए बाकी रुपए पिताजी को दे देती हूं तथा पिताजी उन रुपयों से शराब पीकर दिनभर जुआ खेलते हैं । 


               भाई मुझे अपनी किस्मत से कोई शिकवा नहीं है । शिकवा है तो बस अपने जीवन से ।  जीवन से इसलिए भाई जब जीवन सफेद आंचल का नाम है तो फिर जीवन किस लिए और अगर जीवन है तो फिर सफेद आंचल मेरे जीवन से अब तक दूर किस लिए ।आंचल के दर्द भरे अतीत के बारे में जानकर मेरी आंखों से भी आंसू बहने लगे थे । आंचल के दुख भरे प्रत्येक शब्द ने मेरी अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया । उस बच्ची के सफेद आंचल ने मेरे जीवन के प्रत्येक रंग को बेरंग और जिस्म को पत्थर बेजान कर दिया । अच्छा भाई अब मैं जाती हूं, आंचल ने मेरे कांधे को हिला कर कहा। कहां बच्चे जी ? मैंने स्वयं को संभालते हुए आंचल से पूछा । भाई अपने काम पर भीख मांगने बहुत देर हो गई है । मैं अगर घर पर खाली हाथ रुपयों के बिना गई तो पिताजी मुझे बहुत मारेंगे । मैं आंचल की बातों में खाली हाथ घर जाने के डर के एहसास को महसूस कर सकता था । परंतु मैं आंचल के लिए कर भी क्या सकता था ? क्या मुझे आंचल को सभी कुछ जानने के बाद अपने से दूर उसके हाल पर छोड़ देना चाहिए है ? जिसके मासूम चेहरे में मुझे अपनी प्यारी बहन का चेहरा दिखाई दिया तो क्या उसे और उसकी कोमल मुस्कान को मुझे अपनी आंखों से ओझल होने देना चाहिए ? आदि सवाल मैंने अपनी अंतरात्मा से पूछ डाले । जिनका उत्तर मुझे अपनी अपनी अंतरात्मा से नहीं में मिला । नहीं मुझे आंचल को अपने से दूर नहीं जाने देना चाहिए । अपने सवालों का उत्तर प्राप्त कर अपनी अंतरात्मा से मैंने आंचल से प्रेम पूर्वक पूछा बच्चे जी क्या तुम पढ़ना चाहती हो ? आंचल ने खुश होकर कहां हां भाई हम बहुत पढ़ना चाहते हैं ।


तो ठीक है बच्चे अगर तुम बहुत पढ़ना चाहते हो और पढ़कर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहते हो तो बच्चे तुम मेरे साथ मेरे घर चलो । भाई तुम्हें जीवन के प्रत्येक रंग से आपकी जिंदगी को रंगने की पूरी कोशिश करेगा ।
           नहीं भाई क्षमा करना परंतु तुम्हारी इस छोटी बहन की जिंदगी का सफर इतना लंबा नहीं है कि भाई तुम्हारे अरमानों को पूरा कर सके । आंचल इतना कहकर मायूस  होकर खामोश हो गई । लंबा नहीं मतलब ! मैंने आंचल का हाथ थाम कर पूछा ? हां भाई यह सच है ।माफ करना अपनी छोटी बहन को । क्योंकि मैंने आपसे अपने बारे में एक बात छिपाई है । वह इसलिए छिपाई शायद उस बात को जानकर आप भी कहीं औरों की तरह मुझसे नफरत कर अपने से दूर धिक्कार देते । कौन सी बात बच्चे ? मैंने आंचल से बेसब्री से पूछा ।


   यही बात कि भाई आपकी छोटी बहन को एचआईवी एड्स है । एड्स है नहीं बच्चे जी आप भाई से मजाक कर रहे हो न ताकि भाई तुम्हें अपने साथ घर न ले जा सके । आंचल ने कहा ! नहीं भाई यह झूठ नहीं सच है । भाई यह एक ऐसी सच्चाई है जिसने मेरी मां को मुझसे छीन लिया । मुझे मां ने ही बताया था भाई एक दिन अपनी मृत्यु से पहले इस बीमारी के बारे में कि कैसे यह बीमारी मेरी पहली धड़कन के धड़कने से पहले से ही पिताजी की लापरवाही नादानी के कारण मेरी धड़कनों पर राज करती आ रही है । भाई मैं ज्यादा अधिक कुछ तो नहीं जानती इस बीमारी के बारे में, परंतु मां के कहे शब्दों के अनुसार मुझे इतना जरूर पता है कि यह बीमारी लाईलाज है और यह बीमारी न जाने किस वक्त आपकी बहन को सफेद आंचल उड़ा दे ।


              उस वक्त आंचल की आंखों में सच्चाई साफ झलक रही थी । मुझे विश्वास करना पड़ा आंचल की बातों पर । क्योंकि मुझे एहसास हो गया था आंचल के सफेद आंचल कहने का अर्थ । मैंने महसूस किया उस पल आंचल अपने आपको बहुत विवश, तन्हा, लाचार महसूस कर रही थी । लाचार और विवश तो मैं भी स्वयं को कर रहा था उस पल आंचल की बीमारी के बारे में जानकर । लेकिन मेरी बेबसी आंचल की बेबसी,लाचारी से कम थी । क्योंकि मुझे तो इसका सामना आंचल के अतीत के बारे में जानकर अब करना पड़ रहा था । परंतु आंचल तो न जाने कबसे प्रत्येक रात - दिन अकेला, तन्हा महसूस करती आ रही होगी । मैं आंचल के दुख का एहसास कर स्वयं की अंतरात्मा में सिमट कर रह गया ।

तभी आंचल ने कहा भाई कहां खो गए ? 
कहीं नहीं बच्चे ! मैंने आंचल को कहा । 
आंचल मुझसे कहने लगी भाई 
धरती मां को चांद तारों से सजे आंचल का सहारा मिला । दिन को सूरज की रोशनी रात को चांद का नजारा मिला । फूलों को भी रंग प्यारा मिला,परंतु संयोग नाम तो आंचल है मेरा लेकिन मुझे आंचल का एक ही रंग मिला और भाई उस आंचल का रंग ऐसा है जिसने मेरी जिंदगी का प्रत्येक रंग बेरंग कर दिया ।


 मैंने आंचल की अत्यधिक पीड़ादायक भरी बातों को सुनकर उसे अपने हृदय से लगा लिया । मैंने स्वयं को उस पल जज्बातों में बहने से बड़ी मुश्किल से रोका और स्वयं को संभालते हुए खुश होकर आंचल से कहा कौन कहता है बच्चे इस बीमारी का इलाज नहीं है । मैं जानता था कि मैं आंचल से और स्वयं से भी झूठ बोल रहा हूं । परंतु उस पल मुझे ऐसा करना ही उचित लगा । वो इसलिए क्योंकि मैं आंचल को अपने साथ घर लेकर आना चाहता था । मैं उसकी बाकी बची जिंदगी को खुशहाली का आंचल ओढ़ाकर उसे हर पल खुशियों का एहसास कराना चाहता था ।  झूठ ही सही परंतु ऐसा मैंने पुन आंचल से खुश होकर कहा और अपने साथ चलने का फिर से आग्रह किया ।  

 

भाई क्या सच में मेरी बीमारी ठीक हो सकती है ? आंचल ने खुश होकर मुझसे पूछा । हां बच्चे क्यों नहीं मैंने आंचल से कहा तुम्हारी बीमारी ठीक हो सकती है । मुझे मालूम था मैं आंचल से झूठ बोल रहा हूं । लेकिन उस पल मैंने आंचल के चेहरे पर जो खुशी की चमक देखी वह मेरे झूठ से कहीं ज्यादा मेरे लिए  अनमोल थी । ठीक है भाई हम आपके साथ चलने के लिए तैयार हैं । परंतु भाई क्या मेरे पिताजी मुझको आपके साथ भेजने के लिए अपनी सहमति प्रदान करेंगे ? मुझे नहीं लगता भाई पिता जी ऐसा करने के लिए मुझे अपनी आज्ञा देंगे । बच्चे जी आप इसकी चिंता मत करो । आपके पिताजी को हम कैसे भी राजी कर लेंगे चाहे किसी भी प्रकार से । मैंने आंचल को अपने साथ लिया और कुछ कानूनी कार्रवाई करके, कानून को आंचल के बेरहम, पीड़ादायक अतीत से अवगत कराकर मैं आंचल को अपने साथ अपने घर ले आया । आंचल ने 10 वर्षों तक मेरे साथ रहकर अपनी जिंदगी को खुशियों से संवारा । हर पल को उसने एक पल जानकर बेफिक्र हो कर जिया । लेकिन दुर्भाग्य जिसका मुझे अंदेशा था वही हुआ । आंचल मुझे एक दिन अपने चेहरे पर मुस्कान लिए इस दुनिया को अलविदा कह कर चली गई । 
          आंचल की जुबां से निकले वह अंतिम शब्द जिनको सुनकर मुझे विश्वास है मृत्यु ने भी उसके लिए अपना शीश अदब से झुकाया होगा और वह अंतिम शब्द थे मेरी आंचल के 
भाई मुझे अपनी किस्मत से ने तो आपके मिलने से पहले कोई शिकायत थी और न ही आज है । क्योंकि भाई कर्म से किस्मत बदलती है, किस्मत से कर्म नहीं बदलता ।हमारे कर्मों की कलम ही हमारा भविष्य तय करती है ।भाई मेरे कर्म के कारण ही मेरी किस्मत में भीख मांगना लिखा था । परंतु शुक्रिया करती हूं भाई उस ईश्वर का जिसने मेरे किसी एक कर्म से खुश होकर मेरी किस्मत में भीख मांगना लिखा । वह इसलिए भाई अगर ऐसा मेरे कर्म के कारण मेरी किस्मत में नहीं लिखा होता तो आप जैसा प्यारा भाई मुझे कैसे मिलता और मेरा सफेद आंचल इंद्रधनुष के रंगों से कैसे खिलता ।

माफ करना भाई आपकी बहन आज आपके होठों की मुस्कान अपने होठों पर सजा कर ले जा रही है । भाई हम जैसा कर्म करते हैं किस्मत को विधाता उस कर्म के अनुसार लिखता है । यानी भाई कर्म से किस्मत बदलती है न कि किस्मत से कर्म बदलता है । कर्म पहले है किस्मत बाद में । कर्म ही जीवन है । कर्म ही मृत्यु है और मृत्यु ही जीवन है । जिसके जीवन में प्रेम, दया, त्याग नहीं भाई तो ऐसा जीवन व्यर्थ है । भाई मैं ही जीवन हूँ और प्रेम का प्रारंभ भी मैं ही हूँ । अलविदा भाई ! आपने साबित कर दिया आज कि रिश्ते एहसास के होते हैं । विश्वास के होते हैं ।


एक बार फिर से शुक्रिया भाई आपका मेरा सफेद आंचल खुशियों से रंगने के लिए  । 


तारीख: 20.08.2019                                    देवेन्द्र सिंह उर्फ देव









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