वेटिंग लिस्ट - भाग 2

 

दूर से ही एक खूबसूरत मुस्कान के साथ अपने पुनर्मिलन की ख़ुशी जताई। जॉली सामने आया दोनों मित्रों ने गले लगकर जबरदस्त प्रेम प्रदर्शित किया। दोनों एक दुसरे के घनिष्ठ मित्र थे। दोनों ने एकसाथ ही दस साल पहले एम. एन.एन. आई. टी. (इलाहाबाद) से बी. टेक किया था। अब वे अलग -अलग कम्पनी में जॉब कर रहे थे।

बाहर शिव की कार पार्क थी। शिव ने कार निकाली, जॉली बैठ गया। कार पार्किंग से बाहर होकर सड़क पर आ गयी। अगल-बगल से गाडि़यां फर-फर निकल रहीं थी। दोनों मित्र एक दुसरे से इंजीनियरिंग स्टूडेंट से इंजीनियर बनने तक तय किये हुए सफर के बारे में बात कर रहे थे। जॉली ने बताया की हम आज पुरे सात साल बाद मिल रहे हैं। रास्ते भर में उन्होंने अपने समस्त उपलब्धियों के बारे में बात कर ली। वे किस पद पर हैं ? उनके पास कितनी कारें हो गयीं हैं। उन्हें जॉब करने में कितना मज़ा आ रहा है, आदि। फिर भी उनकी बातें ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं। किसी बात पर जॉली को लगा कि शिव जॉब में रूचि नहीं ले रहा है। तो उसने पुछा -
“ यार तू अपनी ऑफिस से खुश नहीं है क्या ?” 
“नहीं ऐसा कुछ नहीं है, एव्रीथिंग इज फाइन, बट यू नो यार..... साला ज़िन्दगी में मजा नहीं आ रहा है... ।” 

‘‘क्यूं भाई इतनी बड़ी कम्पनी में काम मिल गया, तू इतना बड़ा इन्जीनियर बना, कार खरीद ली, अपना पर्सनल घर खरीद लिया, अब क्या परेशानी है तुझे ?” 

“भाई मैने बहुत तरक़्क़ी कर ली, इतना सब कुछ हासिल कर लिया , शादी हुयी अच्छी सर्पोटिंग बीवी मिली, सब कुछ है फिर भी पता नहीं क्यों मज़ा नहीं आ रहा है।” 

“अरे हां यार ! भाभी कैसी है?”
“मस्त है........ बढि़या।”
“प्यार करती है तुझे ?”
“ बहुत यार...... दो साल शादी को हो गये हमारे, पर हमें दिली शिकायत कभी एक-दूसरे से नहीं हुयी। मेरे हर बात का ख्याल रखती है, बहुत प्यार करता हूं उसे।” 

दोनों अपने ख्यालों में खोये अपने गन्तव्य के तरफ़ बढ़ रहे थे। दोनों अपनी पुरानी यादों में डूबे हुए थे। शिव कार भी सामान्य गति में ही चला रहा था। अचानक बगल से एक डीटीसी0 बस तेज़ आवाज में निकली, जॉली का ध्यान भंग हो गया। दोनों ने एक बार फिर अपने कॉलेज के क़िस्सों को याद किया और ज़रूरत के अनुसार हँसे तथा गंभीर हुए। तभी अचानक उचकते हुए जॉली बोल पड़ा "अबे भाई! तुझसे एक बात पूछना तो मैं भूल ही गया था !" शिव उत्सुक हो गया उस बात को सुनने के लिए। जॉली ने पुछा ‘‘भाई तुझे वो ट्रेन वाली लड़की फिर कभी मिली या नहीं ?’’

सुनकर शिव की धड़कने बढ़ गयीं, शिव के सामने वह खूबसूरत दिन घूमने लगा, चेहरा तो याद नहीं था उस युवती का, पर बातें सारी याद थीं। खूबसूरत मुस्कान चेहरे पर अठखेलियां करने लगी। अचानक फ़िज़ा में रंग आ गया था। जॉली ने शिव के जीवन का वो तार छेड़ दिया था, जिससे उसकी पूरी शरीर संगीतमय हो उठी थी। शिव कार की स्टेयरिंग थामे हुए बोला “भाई मैंने उसे लगातार तीन सालों तक ढूंढ़ा, जब भी इलाहाबाद से दिल्ली आता, स्टेशन पर उसी गाड़ी का इंतज़ार करने जाता था। काश! वो आयी हो ?, मैंने उसे ढूंढने के और भी कई तरीक़े अपनाये, पर.......... ।” जॉली बड़े ध्यान से शिव की बातों को सुन रहा था, शिव कार को दाहिने मोड़ते हुए बोला ‘‘भाई मैं उसे दिल्ली में हर संभावित स्थान पर ढूंढता रहा.... ।”

“फिर क्या हुआ वो मिली ?” 
‘‘ मैं बहुत बदकिस्मत था,भाई। उसके बाद वो आज तक मुझे नहीं मिली। न जाने कहां होगी! उसकी भी शादी हो चुकी होगी! बच्चे होंगे............शायद!”

“पर ऐसा भी तो हो सकता है कि दिखी हो कहीं पर तू पहचान न सका हो!” 
“हाँ हो सकता है, क्यूंकि किसी का चेहरा याद रखने के लिए कुछ घंटों का साथ प्रयाप्त नहीं है। ये बात अलग है कि छड़ भर में ही उस व्यक्ति को ज़िन्दगी भर याद रखा जा सकता है। ख़ैर जो भी हो तीन साल बाद मेरा बीटेक0 फाइनल हुआ, मैं तमिलनाडु जॉब करने चला गया, दो साल जॉब के बाद पापा ने मेरे लिए लड़की देखी और मैंने शादी कर ली । फिर दिल्ली आ गया। तब से यही हूँ। पर आज भी ट्रेन वाली बहुत याद आती है। तुझे पता है ? एक बार मैं उससे मिलना चाहता हूं। मुझे उससे किसी प्रकार का कुछ स्वार्थ नहीं है। यहाँ तक की मैं उसे बताना भी नहीं चाहता। बस उसके चेहरे को सूर्य की रोशनी में देखना चाहता हूं, ताकी आजीवन उसे याद रख सकूं। मन ही मन उसकी आराधना कर सकूँ।बस इतनी सी बात है जो की मेरे लिए बहुत बड़ी बात है ,तुम चाहो तो इसे मेरा स्वार्थ कह सकते हो।” 

‘‘भाभी को ये बात बतायी तूने ?” 
‘‘पागल है क्या ! ............. आरती को बताउंगा ?” शिव कार रोकते हुए बोला ‘‘उतर घर आ गया।” 

भाई तेरा घर तो वाकई बहुत बड़ा है। जॉली चकित भाव से पूरे घर को निहार रहा था। आरती ने जॉली का अभिवादन किया। आरती का व्यवहार देखकर वह समझ गया कि ये लोग मेरा इंतज़ार कर रहे थे। घर वालों ने जॉली की जमकर खातिरदारी की। थोड़ी देर बाद जब आरती इन दोनों से अलग हुयी। तब मौके का फायदा उठाकर शिव ने पुछा "कैसी लगी भाभी ...... मतलब मेरी नहीं तेरी भाभी। " 

“हां भाई, मस्त हैं यार, अब तू भूल जा उस ट्रेन वाली को वरना मैं........ । ” 
शिव ने दौड़कर जॉली के मुंह पर हाथ रख दिया ‘‘अबे चुप! आरती सुन लेगी तो तूफान खड़ा हो जायेगा। मैं इसे बहुत प्यार करता हूं भाई, मुझे आरती से शादी करके बहुत आत्मसंतुष्टि और प्यार मिला है। कैसे समझाऊं तुझे आरती के लिए मेरे प्यार में कोई कमी नहीं है, बस उस लड़की से एक बार मिलने की इच्छा है जो तुझसे कह दी। पता नहीं क्यों, पर है।" जॉलीबेड पर लुढ़क गया। शिव भी बेड पर पड़ गया। कुछ समय बाद आरती भी वहां आई तीनों बातें करने लगे। 

सभी लोग रात के खाने के लिए डाइनिंग टेबल पर बैठे थे, आरती थी, शिव की मां थी,जॉली था, शिव का छोटा भाई और शिव था। आरती ने शिव से जॉली की स्पेशल डिश पूछकर बनाया था। सब खा रहे थे और बातें कर रहे थे। जॉली को मज़ाक सूझा उसने शिव के छोटे भाई से पूछा “तूने कभी किसी वेटिंग टिकट वाले को लिफ्ट दी है ?” भाई ने जवाब दिया “किनारे तो बैठने न देता मैं, लिफ्ट तो देना दूर है।” शिव को जॉली के इस मज़ाक पर हैरानी हो रही थी और डर भी लग रहा था। शिव बार-बार उसे घूरे जा रहा था, पर वो कहां मानने वाला था। उसने मां जी से भी यही सवाल पूछा, मां ने फिर कभी बताउंगी कहकर टाल दिया। फिर उसने तो मज़ाक की हद ही कर दी । उसने कहा “भाभी आपने?” आरती ने साधारण उत्तर दिया “हां एक - दो बार ...।” 

‘कभी कोई यात्रा यादगार ?’
“नहीं कुछ ख़ास नहीं।”
“याद कर लीजिये, मेरे पास एक यादगार कहानी है। पर भैया की इजाजत के बग़ैर बता नहीं सकता ! हाँ अगर आप की कोई यात्रा यादगार हो तो बताइये , प्लीज।"

"मेरी तो नहीं है .... पर आप बताइये न !"
"मैं तो मज़ाक कर रहा था।"
ये सब सुनकर शिव को क्रोध आ रहा था। उसके चेहरे की हवाईयां उड़ चुकी थीं। सब शांत होकर खाना खाने लगे। शिव खुश हुआ, चलो बला टली। जॉली ने सब्ज़ी अपने तरफ बढ़ाने को कहा। आरती ने बढ़ाते हुए मुस्करा दिया और कहने लगी ऐसे ही एक बार की बात है, मैं बनारस से लौट रही थी, शिवगंगा एक्सप्रेस से। ट्रेन इलाहाबाद पहुंची, मेरे ही कम्पार्टमेण्ट में एक लड़का चढ़ा, उसके पास वेटिंग टिकट था। लड़का न्यूजपेपर डालकर नीचे वाली सीट के पास लेट गया, तभी एक आण्टी ने उसे डांटना शुरू कर दिया...... ।” 

आरती अपनी बात कहे जा रही थी । जॉली और शिव की नजर एक-दूसरे से मिली। आरती ने बात ज़ारी रखी “वो बेचारा वहां से उठकर अलग जाने लगा, मैने अपनी सीट उसे शेयर करने को कहा............. ।” 

आरती बताये जा रही थी। हूबहू वही बात। शिव का कान जैसे सुन्न हो चूका था। उसे बस यही सुनाई दिया “पूछने पर मैंने उसे गलत नाम बता दिया था, ज्योति। मुझे मन ही मन क्रोध आने लगा, फिर ऐसे ही कुछ था मुझे ठीक से याद भी नहीं है। मैंने उसे फटकार लगायी थी किसी बात पर ये याद है।” 

शिव ने कहा “गलत नाम ?” 
‘हाँ.....क्यों क्या हुआ ?”
“नहीं कुछ नहीं .... फिर?”
“फिर क्या उसके बाद कुछ नहीं। लेकिन उन दिनों ये घटना अक्सर याद आ जाती थी और मैं खूब हंसती थी।”

"याद तो आना ही था। इश्क़ जो हुआ था।" शिव कहते हुए अवाक् जॉली के तरफ मुड़ा। आरती का चेहरा, अचानक ही उस धुंधले चेहरे से मिलने लगा था। जिसे आज के दस साल पहले शिव ने अस्पष्ट देखा था, जिसकी याद उसकी आदत बन चुकी थी, जिसका चेहरा उसे भूल चुका था। वही आज पांच सालों से शिव की बीवी बनकर रह रही थी और शिव को पता भी नहीं था । शिव के मन में खुशी थी, आश्चर्य था, ईश्वर के लिए धन्यवाद था और कुदरत के इस खूबसूरत इत्तेफ़ाक पर अविश्वास था। कुदरत ने उसे उसका सच्चा प्यार बिना बताये तोहफे में दे दिया था। शिव की आंख प्यार से भर आयी, आरती ने शिव की आंखों को देखा, बोली “अरे आप रो क्यूं रहे हो ?”

जॉली कुछ कहता इससे पहले ही शिव ने कहा "वह लड़का मैं हूँ और जानेमन मुझे तुम से उस रात सच्चावाला प्यार हो गया था। आपको तब से आज तक मैं ढूंढ रहा था। मुझे क्या पता था तुम यहीं ........" 

ये सुनकर आरती की आंखे भर आयी और नारियों की आदत के अनुसार उसने सवाल कर दिया “तो तुम मुझे प्यार नहीं करते थे, तुम मेरे उस चेहरे को ढूंढ़ रहे थे ?” सभी हंस पड़े और शिव ने सबके सामने ही इस कमाल के पुर्नमिलन पर खुश होकर, आरती को गले लगा लिया । आरती ने कहा ‘सच्ची! मुझे विश्वास नहीं हो रहा है और तुम्हारा चेहरा भी मुझे याद नहीं है उस समय का !’


तारीख: 10.06.2017                                    मनीष ओझा









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