आज बहुत रोई पिया जी

आज बहुत ही रोई पिया जी, आज बहुत ही रोई,
जिस्म-फ़रोसी की दुनियाँ में, दूर तलक मैं खोयी।

कोई भी हाल न मेरा पूँछे, कोई न पूँछे ठिकाना,
जिधर भी जावे मोरी नजरिया, चाहवे सब अज़माना।

घूँट घूँट कर ज़हर मैं निगली, देह पथरीली होई,
आज बहुत ही रोई पिया मैं, आज बहुत ही रोई।

लाख मुसाफ़िर, लाख प्यासे, लाख ठिखाने लाये,
लाख तरह के भेष मैं बदली, लाख रूप अपनाये,
कोई रंग न नीका लगा, तेरे रंग रंगोई,
आज बहुत ही रोई पिया मैं, आज बहुत ही रोई।

पैसे फेंके, जोवन देखें, चाहा नाच नचावे,
तोरी सजनी मोरे पिया जी, कब तक लाज़ बचावे,
काहे फेंक हिंय मोहे साजन, तुम परदेसी होई,
आज बहुत ही रोई पिया मैं, आज बहुत ही रोई।

तान-तान तन छलनी होया, मान मान मन मारा,
खान-पान मद्यपान हमारा, दीखे भंवर किनारा,
देह की प्यासी जे नदिया मोहे, बैरन लेवे डुबोई,
आज बहुत ही रोई पिया मैं, आज बहुत ही रोई।

प्रेम-डगर सब छोड़ छाड़ मैं, काम-डगर डग लाई,
मैं लाचारी मीन दुखारी, तड़पी कुआं मह खाई,
दीद प्यासे बेबस बैठे, अब दीखत नहीं कोई,
आज बहुत ही रोई पिया मैं, आज बहुत ही रोई।

किस हालत अब करूं विनती जी, केहूं जोडु धागा, 
तुम ठहरे परदेस पिया जी, भोग-रोग तन लागा,
जिन जोगिन संग जोग किया जी, देह बेच सब सोयीं,
आज बहुत ही रोई पिया मैं, आज बहुत ही रोई।

धूमिल हो गई देह हमारी, तब चंदा भी लजाये
अब ये रूहानी भयी पुरानी, चाहे लाख सजाए,
जल्दी आजा मोरे साज़न, कर दे थी जो सोई,
आज बहुत ही रोई पिया मैं, आज बहुत ही रोई।


तारीख: 10.06.2017                                    एस. कमलवंशी









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