आज का सत्य

ख़ुशियों की कोशिश मे ग़म ही पाओगे, 
ख़ुशी ढूँढने चलोगे और ग़म मे खो जाओगे। 
प्यार ढूँढने से मिलता नहीं इस जहान मे, 
दर्द  राह के हर मोड़ पर है और हर मकान मे।
 
मन्दिरों और मस्ज़िदों मे शान्ति कँहा,  
राजनीति ने यँहा भी क्रान्ति भरी। 
मन्दिरों की आस्था मे स्वार्थ है भरा, 
मस्ज़िदों की नमाज़ मतलबी सी है। 

व्रत और रोज़े तो फाँका हो गये, 
मतलबों की आँधियों मे दिखावा रह गया। 
सभ्यता और संस्कृति एक गूढ़ रहस्य है,  
जिसे चाहता नहीं है कोई जानना। 

न सरहदें लांघी गयी, न समुद्र पार हुए,
कुछ ग़ैर आ गए अपने जहान मे, अपने गुलिस्तान मे। 
ये कल्पना नही किसी भविष्य की, 
न ज़िक्र कर रही मैं किसी और मुल्क़ का,
ये बात आज की, एक क्रूर सत्य है, 
अपनी ज़मीन का अपने जहान का। 

क्या अब भी है कोई शान्ति का रास्ता !
क्या अब भी प्यार का कोई अंश है बचा ?
ग़र है कोई सुबह, ग़र कोई रोशनी 
क्या मिल सकेगा वो रास्ता, 
वो रोशनी का अंश भी हमें !!

जिसके सहारे ज़िन्दगी ये काट देंगे हम 
और इस जहान मे उसे भी बाँट देंगे हम। 
प्यार की तलाश से प्यार मिलता नही
जो दो गे किसी और को, 
वही लौट आएगा। 


तारीख: 09.06.2017                                    पूजा शहादेव









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है