ममता की बैसाखी टोड़ कर
अरमानों के पंख जोड़ कर
मासूमियत का दामन छोड़ कर
पांव पर अपने खड़े हो गए हैं
अब हम बड़े हो गए हैं
रुके हैं आँसू पलकों को सी कर
हँसी विषैली व्यंग्य कटाक्ष पी कर
पैसे की उम्र में रिश्तों को जी कर
हृदय लोहे से ज्यादा कड़े हो गए हैं
अब हम बड़े हो गए हैं
बच्चों की हँसी अब सस्ती लगती है
महंगी शराब की भीड़ मस्ती लगती है
संवेदना से दूर अश्लील कश्ती लगती है
लहू भी शाक से हरे हो गए हैं
अब हम बड़े हो गए हैं
हर धड़कन में जब तेरा अहसास होता है
जब समर्पण से जीवन खास होता है
हर पल सेवा में खुशी का आभास होता है
लगता है, प्रेम के छलकते घडे हो गए हैं
अब हम बड़े हो गए हैं