ऐसा हमसे कुसूर क्या हुआ

बङे चुपचाप से नजर आते हैं वो
वश्ल-ए-मोहब्बत का सुरूर क्या हुआ
मेरे होशोहवास हैं कि मेरे बस में नहीं
आज उनकी आँखों का नूर क्या हुआ

सामने है रूखसार, पर मेरे साथ वो नहीं हैं
रूहानी उन वादों का, मेरे हुजूर क्या हुआ
ना वूजू ना सजदा, है काली घटाओं का मंजर
धङकनें मेरी चुप हो चलीं, तुं ला-शहुर क्या हुआ

कुछ तो करते ख्याल, उन रूहानी कसमों का
दिखाया था जो हमपर, वो गुरूर क्या हुआ
छोङ चले बना के बागबां, बे गुलनसीं-ए-गुल का
हों लाखों फूल, तेरे बगैर मैं हरनूर क्या हुआ

उठें सौ लहरें, बेनदी समन्दर का वजूद ही क्या
दिखे लाख रवानियाँ, पर इस होने का सूहूर क्या हुआ
सांसो का चलने को ही तो, जिंदगी नहीं कहते
हों मुझे लाख कलमे, बिन तेरे मैं मशहूर ही क्या हुआ

तेरी उठती पलकों बिन, नामंजूर है हमें भी सवेरा
चलती सांसो की ताल, अब हमें भी गवारा नहीं
चलो होंगे आप, हमसे पहली पसन्द ए खुदावत
ले चलो हमें भी साथ, ऐसा हमसे कुसूर क्या हुआ
 


तारीख: 06.06.2017                                    उत्तम दिनोदिया









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