ये कविता यूपी और पंजाब के चुनावी परिदृश्य तथा सर्दी के पश्चात उफनते नाक की व्यथा पर आधृत है
उफ़ ये सरदी
एक छिद्र से गंगा
दूसरी छिद्र से यमुना
लगी बहने उमड़-घुमड़ कर
द्वि छिद्रों की धारा का हुआ मिलन
तब धारा ने पकड़ी रफ्तार।
जब-जब धारा मुहाने को आती
छिछिन्ने औऱ रुमाल की याद आती।
पोछ-पोछ कर सुड़क-सुड़क कर,
हाल हुआ है हलाल
मेरा,मित्रों औऱ रुमाल का
होने लगा स्वर्ग का दर्शन सबकों
सुड़क-सुड़क कर मित्रों के बीच,
माहौल सड़ाया।
रुमाल बेचारा सुख न पाया
सप्ताह भर के गीलेपन से ऊब गयी
जनता बेचारी
न असर है, दवा, दारू,और दुआ का।
कुछ लोंगों ने उपाय सुझाया
कुछ लोगों ने प्राणायाम करवाया
कुछ लोगों ने औषधि दिलवाया।
सुन-सुन कर तरह-तरह के विचार से
सर गया चकराया।
कुछ दिनों के बाद संगम का
दाहःसंस्कार स्वतः नाक के
छिद्र में ही हो गया।