बलि प्रथा


बलि की आती बात 
देवी का लेते नाम 
क्यूँ कर दिया समाज ने 
स्त्री को यूँ बदनाम|

संस्कृति हमारी सर्वश्रेष्ठ 
कलंक बन गयी है बलि 
कोई बताये हमको 
प्रथा कब,कहाँ से चली ?

देवी तो है नारी 
नारी मन निष्पाप
देते बलि निरीह की 
खुद के बढाते पाप|

नही पढ़े है मैंने 
पोथी और पुराण, 
जननी रूप है देवी 
कैसे ले सकती जान ?

बलि चढाओं स्वार्थ को 
बलि करो अहंकार,
छल द्वेष को पालते 
निरीह को रहते मार|

अंधा हो रहा समाज 
अपने ही सुख के आगे 
पाप हत्या का लेता 
देवी से रक्षा मांगे|

सर चढ़कर बोलेगा 
हत्या का ये पाप 
छोड़ दे देवी आसन अपना 
उससे पहले जाओ जाग ||
 


तारीख: 20.10.2017                                    सरिता पन्थी









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