बेचारे तड़प कर मर जाएँगे (नज़्म )

काली हवा, घुटती फ़िज़ा,उल्टियाँ  करते खेत सभी
यही नज़ारा दिखेगा,अब पंछी जिस भी नगर जाएँगे  

ये पंछी अब खाली पेट ही अपने - अपने घर जाएँगे
रास्ता भी आसान नहीं,क्या पता कब बिछड़ जाएँगे

इन ऊँची मीनारों और दीवारों से कुछ दिखता नहीं
पंख कतर कर आसमान से ज़मीन पर उतर जाएँगे

तिनका भी तो नहीं मिलता है अब बाग़ - बगीचों में
इन्हें केवल सन्नाटा ही मिलेगा,जिस भी डगर जाएँगे  

खिड़की का टूटा  हुआ  कोई कोना नहीं मकानों में
इस बारिश में बच्चों को लेकर न जाने किधर जाएँगे

कितने ज़माने गुज़र गए इनकी किलकारियाँ सुने हुए
गर अब और चुप रहे, तो बेचारे तड़प कर मर जाएँगे  


तारीख: 08.02.2020                                    सलिल सरोज









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