कुछ अनकहे शब्द वक़्त के साथ कहीँ बह गए
आने वाले कल के सपने अब मेरी सोच में रह गए
क्यों प्रेम का अंत दुःख और पीड़ा से होता है भर
जो प्रेम हमने बांटा वह था कल की आशा और खुशहाली से तर
कैसे मिटा दे उन जिंदगियों को जिसे हमने छुआ था
कैसे कहे कि हमे एक दूजे से कभी प्यार हुआ था
क्या मन के अंतर्द्वंद को अब हम प्रेम कह सकते हैं
क्या मन के टूटने के शोर को हमारे अपने सह सकते है
इस उठती विनाशी लहर की बदल दो तुम दिशा को
कहीँ लील ना ले प्रेम के चाँद को मिटा दो इस स्याह निशा को ॥