छद्म

आंकड़ो के छद्म में खोये हुए तथ्यों को

ढूंडने गए थे जो लौटकर नहीं आये

 

लील स्वेद-सरिताएं सुप्त खारे सिधु में

आंसुओं के विभु कोई ज्वार न उठा पाए

 

दावतों के कारवां सजते रहे, चलते रहे

छू न सके भूखे पेट उनके जाते साए

 

काल के अंतहीन मरुथल की धूप में

आस्था के पाँव जले, हौसले कुम्हलाये

 

बातों की चाशनी के तारों में झूलकर

ऐसे गिरे टूट गए पगले मन के पाए

 


तारीख: 18.03.2018                                    राज हंस गुप्ता









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