चलता रहूँ

नहीं चाह आशियां की 
नहीं चाह चाँदनी की रिमझिम ,
दे दो मुझे बस खुला आसमां 
सितारों की झिलमिल, तारों की टिमटिम । 

चलता चलूँ हरदम ,
नहीं किसी मुकाम को ,
रुके नहीं कदम 
थककर किसी शाम को । 

चलूँ मैं जबतक,
बस चलता रहूँ ,
अजनबी राहों पर,
कदमों के निशाँ गढ़ता चलूँ । 

मंज़िल हो मेरी हर कदम पर,
नहीं फासलों पर मुकाम हो,
थम जाए जहाँ गति मेरी 
वहीँ ज़िन्दगी की शाम हो ।


तारीख: 06.06.2017                                    जय कुमार मिश्रा









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