दीवारों पर लिखा इंक़लाब अब ज़िंदाबाद नहीं है  

 

वह दिशा जिसे पूरब 
कहते हो
वह दिशा पूरब 
आरक्षित है सूरज के लिए
तुम जिसे धूप 
कहते हो 
वह तुम्हारे अस्तित्व को 
छाया में बदल देती है 
तुम जिसे बारिश 
कहते हो
वह तुम्हारे शरीर का पानी है
तुम जिसे अपने रगों में दौड़ता खून 
कहते हो 
देखो वह सदियों से जमा है
हुकूमत की प्रयोगशाला में 
जिसे तुम डर
 कहते हो 
वह तुम्हारी आँखों में उतना ही है 
जितना उनकी आँखों में 
इस डर को कम करने के लिए 
तुम अपने विकल्प को
कहते हो 
प्रार्थना 
वे अपने विकल्प को 
कहते हैं 
आत्ममुग्धता 
तुम जिसे लोकतंत्र 
कहते हो 
उसे वे 
कहते हैं 
सर्कस 
तुम जिसे स्वतंत्रता 
कहते हो
उसे वे सर्वाधिकार्रवाद  
कहते हैं      ।।


तारीख: 07.09.2019                                    रोहित ठाकुर









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