देवप्रेम

प्रेम सुधा इक पत्नी से, जो सुत अभ्यागत पा न सके
स्वयं नारायण, उस उपवन, शहद वृक्ष खिला न सकें


कामदेव के पंचशरों से, जलते पादप का खग हो जो
मातृ स्तन भी उस चातक को, फिर घृत पिला न सकें


चंद्र सलोना उडुदल घेरे,  चंद्रप्रभा बस हिय कानन में
भँवर ह्रदय को शेष अंक भी, निद्रा सुख दिला न सके


प्रेम जानकी मन में साधे, थे रघुनंदन जब जा टकराये
फिर दशकंध को, शिव शस्त्र तलक भी जिला न सके


जलद-चंचला सूर्य-किरण, अंबु के संग बसती तटिनी
अंतश हो जो सत्यवान, अंतक भी मृत्यु मिला न सके


अन्तर्मन के हरिमन पाखी, अतिंद्रिय को यूं कर साधो
अतिमंजुल रतिपति भी, प्रेम जलज को गिला न सके


 


तारीख: 04.07.2017                                    उत्तम दिनोदिया









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