दो रेखाएं
अविरल देख रही थी मैं वो दो रेखाएं
आधी मैं और आधा वो
पृथ्वी के क्षितिज होने का पैगाम
जहां मिल जाती हैं दो रेखाएं
और
होता है उदय
नवीन नूतन नारंगी गोले का
भरने को पृथ्वी पर प्रकाश
और
ये दो रेखाएं
मुझ में उङेल रहीं थीं
कुछ समानान्तर सा
दो रेखाएं
हर्षोतिरेक में देख रही थी मैं वो दो रेखाएं
उसकी दीवानगी और मेरा समर्पण चिह्न
फूल को पराग की प्रथम पाती
कि
अब तुम सिर्फ पुष्प ही नहीं हो
तुम हो गई हो अभूतपूर्व
लिए अपने भीतर
सृजनहार की सृजनात्मकता
और
ये दो रेखाएं
मुझ में भर रहीं थीं
कुछ देवत्व सा
दो रेखाएं
किसी सुरूर में देख रही थी मैं वो दो रेखाएं
उसका निवेदन और मेरा घूंघट
उसकी प्रथम छुअन का वो अहसास
और
वो चुङियों और पायल का संगीत
जिसने मिटा दी थी सभी रेखाएं
आज
बदल गया था फिर दो रेखाओं में
और
ये दो रेखाएं
आज मुझ में नाच रहीं थीं
कुछ गुदगुदाती सी
दो रेखाएं
खुद में खोकर देख रही थी मैं वो दो रेखाएं
उसका सिंदुर और मेरी माँग
किसी भी विवाहिता का लाजपत्र
लेकिन.......
मैं तो अविवाहित हूं......
अरे हां, मैं तो अविवाहित हूं......
और निषिद्ध है
मेरे जीवन में जन्म दो रेखाओं का
और
अब ये दो रेखाएं
मुझ में कौंध रहीं थीं
किसी भयतरंग सी
दो रेखाएं
अब भी देख रही थी मैं वो दो रेखाएं
लेकिन अब
अविरलता, हर्षोतिरेक, सुरूर और भय के
मिश्रित भावों के साथ
सब फिर से आंखों में तैर गया
वो पृथ्वी के क्षितिज होने का पैगाम......
वो उसकी दीवानगी और मेरा समर्पण.....
वो उसका निवेदन और मेरा घूंघट......
परंतु बगैर
मेरी माँग मैं उसके सिंदुर के.....
और मैं खो बैठी होश
लिए हाथों में
वो दो रेखाएं
जब आंख खुली
तो
मैं, मेरे बिस्तर पर थी
सब कुछ घुम सा रहा था
अजीब सा भारीपन लिए,
किसी तरह उठकर
जब खुद को, आइने में देखा
तो मेरी मांग में था सिंदूर
और
मेरे पीछे खड़ा नजर आ रहा था वो
जिसने मुझे आज, कर दिया था परिपूर्ण
लगाकर एक सिंदूरी रेखा....
मुस्कुराता हुआ, लिए हाथों में
मेरे हाथों से छिटकी वो दो रेखाएं
दो रेखाएं
अब मिल कर
वृत्ताकार रूप ले रही थी
और कहीं दूर
क्षितिज पर, शीतलता बिखेर रहा था
इक नवीन नूतन नारंगी गोला
अन्तर्मन को आह्लादित कर रही थी
पुष्प को उसके पराग की पाती
मनमोहक हो उठा था
पायल व चूङियों का संगीत
और
उसके सीने से लगते ही
बांधो को तोङ कर बह निकली
मेरी आंखों से खुशी कि दो रेखाएं......