दोहे रमेश के गणतंत्र दिवस पर 

रचें सियासी बेशरम ,जबजब भी षड्यंत्र ! 
आँखे मूँद खड़ा विवश, दिखा मुझे गणतंत्र !! 

कहलाता गणतंत्र का, दिवस राष्ट्रीय पर्व ! 
होता है इस बात का , ...हमें हमेशा गर्व !! 

हुआ पतन गणतंत्र का, बिगड़ा सकल हिसाब ! 
अपराधी नेता हुए, ……..सिस्टम हुआ खराब !! 

राजनीतिक के लाभ का, ..जिसने पाया भोग ! 
उसे सियासी जाति का, लगा समझ लो रोग !! 

यूँ करते हैं आजकल, राजनीति में लोग ! 
लोकतंत्र की आड में, सत्ता का उपभोग !! 

भूखे को रोटी मिले,मिले हाथ को काम ! 
समझेगी गणतंत्र का, अर्थ तभी आवाम !! 

मात्र ख़िलौना रह गया अपना अब गणतंत्र !
भ्रष्टाचारी देश का , .......चला रहे जब तंत्र! !

लोकतंत्र के तंत्र को , ........करते हैं बरबाद!
स्वार्थपथी गणतंत्र का, बदल रहे अनुवाद!!

रूप रंग गणतंत्र का ,बदल गया है आज!
करते अब इस देश में , भ्रष्ट शान से राज !!

अपनो ने ही कर दिया,अपनो को परतंत्र!
आँखे अपनी मूँद कर, देख रहा गणतंत्र! !

जिसको देखो कर रहा, .वादों की बौछार !
और घोषणापत्र भी , बना एक हथियार !!
.
दूषित है अब देश का ,बुरी तरह गणतंत्र !
राजनीति भी हो गई,.बस सत्ता का यंत्र !!


तारीख: 20.03.2018                                    रमेश शर्मा









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