एक पत्नी की पाती

 

धीरे धीरे अपनी मुलाकातों का बढ़ना,

धीरे धीरे तेरा दिल में उतरना,
न खबर कब मेरा ख्बाब बन गयें तुम,
जिन्दगी में तुम से आप बन गयें तुम ।।

         मेरी सांसो में तुम समाते गये,
         मोहब्बत का जादू दिखाते गये,
         मेरे किस्सो में, हिस्सों में घुलते गये,
          मुझे मुझसे जुदा तुम  करते गये।।

कितनी मुश्किल से अपनों को मनाया था,
सबसे लड़कर जहाँ अपना बसाया था,
क्या हुआ अचानक सब बदलने लगा,
मेरा अस्तित्व क्यों तुमको खटकने लगा।।

             प्रीत की बेल अब मुरझायी सी हैं,
             रिश्ते की नींव तुमने हिलायी सी हैं,
             आसमां में बदरी आयी सी हैं,
             फिर क्यूँ नही याद मेरी तुम्हें आयी सी हैं।।

  नही चाहत थी तुम्हारी, माँ बनूं मैं अभी,
जिद पकड़ी जो तुमने ना छोड़ी सभी,
बड़ी कोशिश से रिश्ता बढ़ाया था फिर से
फूल उपवन में मैंनें खिलाया था फिर से ।।

           मेरी कोशिशो का असर जब दिखने लगा,
           बीज प्रीत का जब कोख में पलने लगा,
            दिन बापस से प्यारे लोटेंगें अभी,
            ये चाहत भी मेरी फना हो गयी ।।

अगर जननी मैं उसकी, जनक हों तुम्ही,
देख कर फिर भी दिल क्यों पसीजा नहीं,
नन्ही गुड़िया को क्यों सीनें से लगाया न था,
झूला बाहों का क्यों उसे झुलाया न था ।।

           कभी बहाना किया तुमनें अधिक काम का,
            कभी था यें बहाना मेरे व्यवहार का
            मेरें लिये तुम पर ना समय था कभी
            क्या हैं गलती मेरी क्यों बताते नहीं ।।

तुमनें मेरे वजूद को न माना कभी,
मैनें कोशिश भी न की जताने की कभी,
जी रहें हो तुम तो इतर कहीं,
मर रही हूँ मैं तिल तिल यहीं ।।

            कोशिश कर करके तुमसे अब थकने लगी,  
            सभी अहसासों को अपनें दफन कर चली,
            गर थोड़ी मोहब्बत भी की हो कभी,
            लौट आओगे फिर से ये जिद हैं मेरी।।

थोड़ी कोशिश तो तुम भी क्यों करते नहीं,
मैं रुकी हूँ प्रिय,इन्तज़ार में यहीं,
इन्तज़ार में यहीं.........
इन्तज़ार में यहीं.......
 


तारीख: 17.03.2018                                    संगीता त्रिवेदी









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