एक ज्वार

 

खून तो मेरा भी उबल रहा है
कइयों की तरह
गुस्सा भी आता है
विचार आते हैं एक से एक क्रांतिकारी


सोचता हूँ कि अब उठना होगा युवाओं को
तब ही निकलेगा हल, तमाम समस्याओं का
शायद शुरुआत करनी होगी मुझे ही
नेतृत्व करना होगा, एक नई क्रांति का
जो कर सकेगा व्यवस्था परिवर्तन


हाँ! युवाओं में है वो जोश, वो शक्ति
मुझमें भी
लग रहा है कि छोड़ दूँ सबकुछ
और उतार जाऊँ रणक्षेत्र में
आखिर यह मेरा भी तो देश है


कई लोग, महापुरुष खड़े हुए थे,
इस देश के लिए, समाज के लिए
अपना सर्वस्व अर्पण कर
प्रेरणा देते हैं एसे लोग, मुझे
कि मैं भी कुछ कर जाऊँ
देश हित में
कर्ज़ चुका दूँ मातृभूमि का
बस एक बार थोड़े से पैसे आ जाने दो
कमा लेने दो
फिर देखना।
 


तारीख: 18.08.2017                                    अमर परमार









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