गौरैया

बहुत दिनों बाद मिली हो
गौरैया तुम कहाँ रहती हो
तुम्हें देख छलक गये
अँखियों से आंसू
चहक चहक तुम क्या कहती हो
तुम्हें अब मैं दोबारा कब देख पाऊंगी


तुम मेरे संग क्यों नहीं
रहती हो
मेरे आँगन की धूप तुम्हें
अच्छी नहीं लगती
मेरे पेड़ों की घनी छाँव तुम्हें
शीतलता नहीं देती
फुदक फुदक तुम दाना चुगने
मेरी छत पे क्यों नहीं आती हो


आसमां में उड़ती हो
तो खो जाती हो
जमीं पे मिलती हो
तो बिछड़ जाती हो
गौरैया तुम रोज
सुबह आसमां में बादलों की प्रहरी सी
दोपहर में तपते सूरज की तपिश सी
शाम को ठंडी पुरवाईयों 
के झोंकों सी
रात को चाँद सितारों की बतियो सी
मेरे पास हमेशा के लिये
ठहर क्यों नहीं जाती हो


मुझे यूं अकेला छोड़
कौन दिशा उड़ जाती हो
मेरी नज़रों से कहाँ ओझल हो जाती हो
आसमां के रंग में 
मिलती
बादलों के धुंए की
लकीर का दामन 
थामती
किस गुप्त स्थान पे
लुप्त हो जाती हो।


तारीख: 21.10.2017                                    मीनल









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