गीत तुम मेरे रुदन हो

 

कुछ पलों को जो बिठा ले पास अपने 
पीर के कंटक तुम्ही तो वो सुमन हो|
और बेघर सी भतकतीं आह मेरी 
खोजतीं जिसको तुम्ही तो वो सदन हो|

 

पी रहे निःशब्द मेरे आंसुओं को 
और बचते फिर रहे हो ठोकरों से ;
अपने मन में ही छुपाये सब दु:खों को
घुट रहे चुपचाप तुम वो घन सघन हो|

 

हास में जग के नहीं खो पाए तुम
जब पुकारा दर्द ने तो आये तुम
जब मेरी वीरानगी के पंख कांपे 
छा गए जीवन पे मेरे वो गगन हो|
 


तारीख: 03.08.2017                                    राज हंस गुप्ता









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