कूएँ से पानी भरने का
मन्दिर की सीढ़ी चढ़ने का
साथ बैठ हँसने रोने का
हक अब है ना हक पहले था !
आँखों से पीड़ा क्या कहते
नजरें गड़ी रही धरती में
शब्दों में दिल की कहते तो
चिपकी रही जीभ तालू से !
थूक अटकता रहा हलक में
आवाजें शीशों में रोई
एक एक पल युग से भारी
पहले भी था अब भी यूँ ही !
पूरी सदी खनकती आई
जंजीरों की कड़ी कड़ी , पर
छल था एक सुखद बहकावा
लीपा पोती दीवारों पर!
एक हिकारत जली बुझी सी
हमें देख मुँह का बन जाना
झुलसाता सामंती मौसम
अब भी है वो पहले भी था !
सुख में ,दुख में, आनपड़ी में
कभी साथ देने को कहते
जान लुटा देने को तत्पर
अब भी हैं हम ,पहले भी थे !