जब मैं बच्चा था
पायलट बनना चाहता था ...
हवाईजहाज बना भी लेता था और उङा भी
बस लैंडिंग की जगह पर कंट्रोल नहीं था
जब बारिश होती थी झमाझम
नाविक बनना चाहता था
जहाज कर देता था तैयार नाममात्र के खर्च पर
बस पानी में थोड़ा जल्दी गल जाता था
जब सो जाते थे घरवाले गर्मियों में
बिना चप्पल दबे पांव धुप में निकलता था
बनना चाहता था सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज
और शाम को बाप की यॉर्कर जैसी चप्पलें खाता था
जब सोता था, तारों की छांव
बहुत बड़ा सितारा बनना चाहता था
आंखों में अप्रतिम चमक भी थी उस दौर
और सपनों में अनेक लीड रोल भी किया करता था
दिवाली कि छुट्टियों के लेता था मजे
हॉलिडे होमवर्क अंतिम दिन याद आता था
फिर, पेट दर्द, सर दर्द, बुखार और जी भी घबराता था
पर कमबखत एक भी बहाना चल नहीं पाता था
जब जाता था स्कूल, हो कर तैयार
असलियत तो, बस दोस्तों से मिलना चाहता था
कभी भी ना बिछङेंगें, के होते थे वादे
और अब भी उन यादों में, अनेक बार रो पङता हूं
अब जहाज भी है और नाव भी
लैंडिंग भी प्रोपर है और गलने का भी डर नहीं
जिंदगी के रंगमंच ने कलाकार भी बना दिया है
आफिस में बल्लेबाजी भी कर लेता हूं और गेंदबाजी भी
पर ना जाने, अब दिल में वो खुमार क्यों नहीं आता
स्कूल के दोस्तों सा किसी वादे पर एतबार क्यों नहीं आता
कोई हो कैलकुलेटर, तो कर के समझाये हिसाब
कि बचपन की तरह अब.....
मेरी हकीक़तों को मेरे सपनों पर सच्चा प्यार क्यों नहीं आता...