कुछ हल्की-गहरी
आड़ी-तिरछी , टेढ़ी-मेढ़ी ,
एक-दूसरे को काटती
गांव-शहर , नदी-नाले बनाती ,
सिलवट लिए
जीवन को उकेरती रेखाएं ।
बंद पड़ी मुट्ठी में
उपजती-पनपती गंध ,
थक-हार चुके जीवन में
जग-जीवन की अभिलाषा ,
फुटपाथ की अंगूठी पहन
चुनौतियों से लड़ती आशाएं ।
मटमैली शर्ट पहने
कॉलर पर काली-कालिख लिए ,
दौड़ती-भागती। , कूदती-फांदती
एक-दूसरे को कुचलती भीड़ में ,
दफ्तर-दफ्तर दस्तक देती
चार-पेट वाली भाव-भंगिमाएं ।
अविरल-अबूझ पहेली
दादी के किस्सों का सार ,
कोई धूमिल पड़ी छवि
हवा के थपेड़े खाती हुयी ,
मुस्कुराकर गा रही हो
यह जीवन-मरण की गाथाएं ।