काली रात होने को है

दिन का शांत कोलाहल,
डरावना सन्नाटा होने को है।
बाजुओ का वो अमीर मजदूर
गरीबी से भूखे पेट सोने को है
जो दिनभर थे शरीफ
गुनाह उन्ही के हाथो होने को है
शाम हो गयी
काली रात होने को है

शरारत भरे बच्चे
मासूम नींद के आगोश में खोने  को है
आसमान की चाहत लिए
फिर कोई नाउम्मीद होने को है
चंद पैसो की जरुरत में
बेशकीमती आबरु खोने को है
शाम हो गयी
काली रात होने को है

दिल की गहराइयो में सपने लिए
फिर कोई आशिक़ सबकुछ खोने को है
पलकों की छाँव में संजोये अपने लाडले से
फिर कोई माँ बेघर होने को है
दुनिया को ख़ाक समझने वाला
आज खुद ख़ाक होने को है
शाम हो गयी
काली रात होने को है


तारीख: 06.06.2017                                    प्रतीक यादव









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