किस्मत को रूठते देखा हमने

किस्मत को 
रूठते देखा हमने 
   हमने तो सभी के 
    दर्पण की हिफाजत करनी चाही 
      अपना ही दर्पण बिन पत्थर लगे टूटते देखा हमने

कोई एक भी 
     ऐसा मिला नही 
          हमें देख जिसका दिल खिला नही

कतरा अस्क का 
    जिसे हमने अपना समझा 
          जब  छलका  पता  चला 
               वो भी किसी ओर के नाम का निकला ।

मुश्किल है बताना
   बेपरवाह क्यों है जमाना 
      रिश्तो में अब वो विस्वास दिखता नही 
         अब  तो हर  रिश्ता  लगता  है  बेगाना ।

आँखो में प्रेम कम 
       हवस का खंजर देखा 
            इंसानियत कम, हैवानियत का मंजर देखा

कैसी 
  विडंबना है 
     सभी के लिए 
       अपने घर की आबरू अनमोल 
         अफसोस कितनी ही आबरूओ को 
           बेमोल लुटते देखा अन्धे बन हम सबने ।

भूखे पेट 
नींद नही आई 
और सुबह हो गयी 
आज भी याद है मुझे 
सभी टूटते तारो की बेवफाई 
कैसे एक - एक कर सभी ने मेरी दुआ ठुकराई

एहसास करके देखना 
   विस्वास करके सोचना 
        शायद मेरी बात असर कर जाये 

यूं तो जिंदगी को एक पल में 
         सिमटते देखा है हमने ।


तारीख: 26.08.2017                                    देवेन्द्र सिंह उर्फ देव









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