मुझको मेरे ही भीतर की
गिरहों में उलझाने वाले,
मेरे ख्वाबों में चुपके से
आने वाले, जाने वाले
जब से तुझसे दूर हुआ हूँ,
हुआ हूँ, हो ज्यों एक अकिंचन,
अब तो मुझको दे दे अपनी,
प्रेम सुधा का क्षणभर सिंचन
जाने कितनी बार ह्रदय पर
मैंने तेरे चित्र उकेरे,
और हज़ारों बार मैं भूला हूँ
अपनी पलकें झपकाना,
जाने कितनी बार रहा हूँ
जागा सा अपनी नींदों में,
और हज़ारों बार याद है
जागी आखों से सो जाना,
हुआ हूँ अब मैं एकाकी सा,
भावशून्य सा और अचिंतन
अब तो मुझको दे दे अपनी
प्रेम सुधा का क्षणभर सिंचन.