फ़ौज़ी का खत प्रेमिका के नाम

कितनी शांत सफेद पड़ी
        चहु ओर बर्फ की है चादर
जैसे कि स्वभाव तुम्हारा
        करता है अपनो का आदर||

जिस हिम-शृंखला पर बैठा
        कितनी सुंदर ये जननी है|
बहुत दिन हाँ बीत गये
        बहुत सी बाते तुमसे करनी है||

कभी मुझे लूटने आता है
        क्यो वीरानो का आगाज़ करे
यहाँ दूर-२ तक सूनापन
        जैसे की तू नाराज़ लगे||

एक चिड़िया रहती है यहाँ
        पास पेड़ की शाखो पर
ची ची पर उसकी खो जाता हूँ
        जैसे सुध खोता था तेरी बातो पर||

मै सुलझाता हूँ उलझनो को
        जैसे सुलझाता था तेरे बालो को
कभी फिसल जाता हूँ लेकिन
        जैसे पानी छू गिरता गालो को||

कभी तुझे सोच कर हस लेता
        कभी तुझे सोचकर रो लेता
एक तेरा दुपट्टा  ले आया हूँ
        उसको आंशूओ से धो लेता ||

एक शपथ ली थी आते हुए
        सर्वोपरि राष्ट्रधर्म निभाऊँगा
मिलने का मन तो बहुत है
        पर अभी नही आ पाऊँगा||


तारीख: 05.06.2017                                    शिवदत्त श्रोत्रिय









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